लेखनी कहानी -02-Nov-2021
" पंछी वो नील गगन का "
बनकर आवारा पंछी मैं,
अम्बर में, उड़ चला,
उस नील गगन में,
तारों संग बतियाऊँ मैं,
बागों -बागों, घूम कर में,
नीर नदी का, पीकर आऊँ,
बनकर आवारा.....
अम्बर के ऊपर ,
बनाऊँ में एक घरौंदा,
ऊपर अम्बर के बनाऊँ,
मैं एक घरौंदा ,
धरती पर तो मैं,
टिक न पाऊँ,
बनकर आवारा.....
घूमुं - फिरुं मैं ,
आवारा पंछी बनकर,
धरती से अम्बर तक,
चहक - चहक मैं जाऊँ,
बनकर आवारा.....
चंदा से कुछ पूछूँ तो,
छुप -छुप जाता बादल में,
पवन संग खेल जमाये,
झोंकों से इतराये खूब,
बनकर आवारा.....
आये उमड़ घुमड़ के बादल,
नीर को संग अपने लाये,
जब होने लगी, बूंदाबांदी,
पवन मंद -मंद मुस्काऐ,
बनकर आवारा.....
बिजली ने देखा जब,
तमक कर वो आई,
खेल रमा है भाई खूब,
झम झमाकर बारिश आई,
बनकर आवारा पंछी में,
अम्बर में उड़ जाऊँ ।
काव्य रचना -रजनी कटारे
जबलपुर ( म.प्र.)
Niraj Pandey
02-Nov-2021 04:14 PM
बहुत खूब
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ऋषभ दिव्येन्द्र
02-Nov-2021 02:00 PM
खूबसूरत पंक्तियाँ 👌👌
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Ramsewak gupta
02-Nov-2021 12:19 PM
बहुत खूब लिखा है
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